जुबा तो डरती है कहने से |
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पर दिल जालीम कहता है |
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उसके दिल में मेरी जगह पर |
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और ही कोई रहता है ॥ धृ ॥ |
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बात तो करता है वोह अब भी |
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बात कहाँ पर बनती है |
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आदत से मैं सुनती हूँ |
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वोह आदत से जो कहता है ॥ १ ॥ |
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दिलमें उसके अनजाने |
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क्या कुछ चलता रहता है |
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बात बधाई की होती है |
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और वोह आखें भरता है ॥ २ ॥ |
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रात को वोह छुपकेसे उठकर |
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छतपर तारे गिनता है |
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देख के मेरी इक टुटासा |
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सपना सोया रहता है ॥ ३ ॥ |
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दिलका क्या है, |
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भर जाये या उठ जाये, |
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एक ही बात... |
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जाने या अनजाने |
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शिशा टूटता है तो टूटता है ॥ ४ ॥ |