| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर, किती शहाणे आपूले अंतर... |
| त्याच जागी त्या येऊन जाशी, माझ्यासाठी... माझ्यानंतर... |
| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर... |
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| अवचीत कधी सामोरे यावे... |
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| अन् श्वासांनी थांबून जावे... |
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| परस्परांना त्रास तरीहि, परस्पराविण ना गत्यंतर... |
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| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर, किती शहाणे आपूले अंतर... |
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| मला पाहुनी... दडते-लपते, |
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| आणिक तरीहि... इतूके जपते... |
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| वाटेवरच्या फुलास माझ्या... लावून जाते हळूच फत्तर |
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| भेट जरी ना ह्या जन्मातुन, |
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| ओळख झाली इतकी आतून... |
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| प्रश्न मला जो पडला नाही... त्याचेही तुझ सुचते उत्तर |
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| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर, किती शहाणे आपूले अंतर... |
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| मला सापडे तुझे तुझेपण, |
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| तुझ्या बरोबर माझे मीपण... |
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| तुला तोलुनी धरतो मि अन्, तु ही मजला सावर् सावर... |
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| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर, किती शहाणे आपूले अंतर... |
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| मेघ कधी हे भरुन येता, |
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| आबोल आतून घुसमट होता... |
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| झरते तिकडे पाणि टप् टप्... अन् इकडेही शाई झर् झर्... |
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| कितीक् हळवे, कितीक् सुंदर, किती शहाणे आपूले अंतर... |
| त्याच जागी त्या येऊन जाशी... माझ्यासाठी... माझ्यानंतर... |
| किती शहाणे आपूले अंतर... |