गझल - संदिप खरे..... Ghazal by Sandip Khare

जुबा तो डरती है कहने से
पर दिल जालीम कहता है
उसके दिल में मेरी जगह पर
और ही कोई रहता है ॥ धृ ॥




बात तो करता है वोह अब भी
बात कहाँ पर बनती है
आदत से मैं सुनती हूँ
वोह आदत से जो कहता है ॥ १ ॥



दिलमें उसके अनजाने
क्या कुछ चलता रहता है
बात बधाई की होती है
और वोह आखें भरता है ॥ २ ॥




रात को वोह छुपकेसे उठकर
छतपर तारे गिनता है
देख के मेरी इक टुटासा
सपना सोया रहता है ॥ ३ ॥




दिलका क्या है,

भर जाये या उठ जाये,
एक ही बात...

जाने या अनजाने

शिशा टूटता है तो टूटता है ॥ ४ ॥

गझल - संदिप खरे..... Ghazal by Sandip Khare