क्षितिजाच्या पार |
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क्षितिजाच्या पार वेड्या संध्येचे घरटे |
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वेड्या संध्येच्या अंगणी रात थरथरते |
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कुणी जा दूर तशी मनी हूरहूर |
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रात ओलावत सूर वात मालवते... |
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आता बोलायाला कोण संगे चालायाला कोण |
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कोण टाकेल जीवाचे ओवाळून लिंबलोण |
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पायरीला ठसे दार खुले छत पिसे |
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कुण्या उडल्या राव्याचे गीत घर भरते... |
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आता विझवेल दिवा सांज कापऱ्या हातांनी |
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आणि आभाळाचे गूज चंद्र सांगेल खुणांनी |
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पडतील कुणी पुन्हा भरतील डोळे |
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पुन्हा पुसतील पाणी हात थरथरते... |
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मनी जागा एक जोगी त्याचे आभाळ फाटके |
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त्याचा दिशांचा पिंजरा त्याच्या झोळीत चटके |
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भिजलेली माती त्याचे हललेले मूळ |
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त्याचे क्षितिजाचे कूळ त्या चालवते... |
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सांज अबोला अबोला सांज कल्लॊळ कल्लॊळ |
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सांज जोगीण विरागी सांज साजीरी वेल्हाळ |
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सांजेवर फूल गंध मौनाचा हवेत |
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दूर लागले गावात दीप फरफरतेक्षितिजाच्या पार वेड्या संध्येचे घरटे |
वेड्या संध्येच्या अंगणी रात थरथरते |
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कुणी जा दूर तशी मनी हूरहूर |
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रात ओलावत सूर वात मालवते... |
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आता बोलायाला कोण संगे चालायाला कोण |
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कोण टाकेल जीवाचे ओवाळून लिंबलोण |
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पायरीला ठसे दार खुले छत पिसे |
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कुण्या उडल्या राव्याचे गीत घर भरते... |
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आता विझवेल दिवा सांज कापऱ्या हातांनी |
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आणि आभाळाचे गूज चंद्र सांगेल खुणांनी |
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पडतील कुणी पुन्हा भरतील डोळे |
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पुन्हा पुसतील पाणी हात थरथरते... |
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मनी जागा एक जोगी त्याचे आभाळ फाटके |
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त्याचा दिशांचा पिंजरा त्याच्या झोळीत चटके |
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भिजलेली माती त्याचे हललेले मूळ |
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त्याचे क्षितिजाचे कूळ त्या चालवते... |
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सांज अबोला अबोला सांज कल्लॊळ कल्लॊळ |
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सांज जोगीण विरागी सांज साजीरी वेल्हाळ |
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सांजेवर फूल गंध मौनाचा हवेत |
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दूर लागले गावात दीप फरफरते |
क्षितिजाच्या पार........संदिप खरे.... Kshitijachya Par by Sandip Khare