मी मोर्चा नेला नाही |
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मी मोर्चा नेला नाही, मी संपही केला नाही |
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मी निषेध सुद्धा साधा, कधी नोंदवलेला नाही |
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भवताली संगर चाले, तो विस्फ़ारुन बघताना |
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कुणी पोटातून चिडताना, कुणी रक्ताळून लढताना |
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मी दगड होउनी थिजलो, रस्त्याच्या बाजूस जेव्हा |
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तो मारायाला देखिल, मज कुणी उचलले नाही |
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नेमस्त झाड मी आहे, मूळ फ़ांद्या जिथल्या तेथे |
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पावसात हिरवा झालो, थंडीत झाडली पाने |
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पण पोटातून कुठलीही, खजिन्याची ढोली नाही |
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कुणी शस्त्र लपवले नाही, कधी गरूड बैसला नाही |
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धुतलेला सातिव सदरा, तुटलेली एकच गुंडी |
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टकलावर अजून रुळते, अदृश्य लांबशी शेंडी |
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मी पंतोजींना भ्यालो, मी देवालाही भ्यालो |
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मी मनात सुद्धा माझ्या, कधी दंगा केला नाही |
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मज जन्म फ़ळाचा मिळता, मी केळे झालो असतो |
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मी असतो जर का भाजी, तर भेंडी झालो असतो |
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मज चिरता चिरता कोणी, रडले वा हसले नाही |
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मी कांदा झालो नाही, आंबाही झालो नाही |