| नास्तिक |
|
|
|
|
|
| एक खरा खुरा नास्तिक जेव्हा देवळाबाहेर थाबतो |
|
| तेव्हा खर तर गाभा-यातच भर पडत असते |
|
| की कोणीतरी आपल्यापुरता सत्याशी का होईना, |
|
| पण प्रामाणिकपणे चिकटुन राहिल्याच्या पुण्याईची ! |
|
|
|
|
|
|
|
| एक खरा खुरा नास्तिक जेव्हा देवळाबाहेर थाबतो |
|
| तेव्हा होते निर्माण |
|
|
|
|
| देवाने आपला आळस झटकून देवळाबाहेर येण्याची ! |
|
|
|
|
|
|
| एक खरा खुरा नास्तिक जेव्हा देवळाबाहेर थाबतो |
|
| तेव्हा को-या नजरेने पाहत राहतो |
|
|
| सभोवतालच्या हालचाली, भाविकाच्या जत्रा... |
|
| कोणीतरी स्वत:चे ओझे , स्वत:च्याच पायावर |
|
| साभाळत असल्याचे समाधान लाभते देवलाच ! |
|
|
|
|
|
|
|
| म्हणून तर एक खरा खुरा नास्तिक जेव्हा देवळाबाहेर थाबतो |
| तेव्हा देवाला एक भक्त कमी मिळत असेल कदचित ! |
| पण मिळते आकठ समाधान एक सहकारी लाभल्याचे |
|
|
|
|
|
|
| देऊळ बद झाल्यावर एक मस्त आळस देउन |
|
| बाहेर ताटकळलेल्या नास्तिकाशी गप्पा मारता मारता |
| देव म्हणतो, " दर्शन देत जा अधुन मधुन........ |
|
| तुमचा नसेल विश्वास आमच्यावर, |
|
|
| पण आमचा तर आहे ना ! " |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
| देवळाबाहेर थाबलेला एक खरा खुरा नास्तिक |
|
| कटाळलेल्या देवाला मोठ्या मिन्नतवारिने पाठवतो देवळात |
| तेव्हा कुठे अनंत वर्षे आपण घेऊ शकतो दर्शन |
|
| अस्तिकत्वाच्या भरजरी शालीत गुदमरलेल्या देवाचे.... |